Reject me or accept me O' Lord
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आई हूँ, जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आई हूँ।

ठुकरा दो या प्यार करो – सुभद्रा कुमारी चौहान

Here is an old classic from Subhdra Kumari Chauhan. Most of us have read this poem in our school days. Here it is to refresh the memory. – Rajiv Krishna Saxena

ठुकरा दो या प्यार करो

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं।

धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लाई
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आई।

धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं।

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं।

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आई
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आई।

पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो।

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आई हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आई हूँ।

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो।

∼ सुभद्रा कुमारी चौहान

लिंक्स:

 

Check Also

त्यौहार का दिन आज ही होगा – बालकृष्ण राव

Go ahead and do it, if you feel a strong motivation arising some where deep …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *