ब्याह की शाम – अजित कुमार

A bride all dressed up to get merried. An arranged marriage so there must be uncertainity about the life to follow.  What is she thinking as the night of grand ceremonies approaches? Some excitement, some apprehensions and regrets… Read this lovely poem by Ajit Kumar. The poem is so intensely personal and so emotional that it leaves a deep impression. Read it slowly, not in mind but vocalize it and feel the pethos…   Rajiv Krishna Saxena

ब्याह की शाम

ब्याह की यह शाम‚
आधी रात को भाँवर पड़ेंगी।
आज तो रो लो तनिक‚ सखि।

गूँजती हैं ढोलकें –
औ’ तेज स्वर में चीखते– से हैं खुशी के गीत।
बंद आँखों को किये चुपचाप‚
सोचती होगी कि आएंगे नयन के मीत
सज रहे होंगे नयन पर हास‚
उठ रहे होंगे हृदय में आश औ’ विश्वास के आधार
नाचते होंगे पलक पर
दो दिनों के बाद के… आलिंगनों के‚ चुंबनों के वे सतत व्यापार
जिंदगी के घोर अनियम में‚ अनिश्चय में
नहीं हैं मानते जो हार।

किंतु संध्या की उदासी मिट नहीं पाती‚
बजें कितने खुशी के गीत
और जीवन के अनिश्चय बन न पाते कभी निश्चय‚
हाय। क्रम इस जिंदगी के… साथ के विपरीत।
साँवली इस शाम की परछाइयाँ कुछ देर में
आकाश पर तारे जड़ेंगी‚

अश्रुओं के तारकों को तुम संजो लो
आज तो रो लो तनिक सखि‚
ब्याह की यह शाम‚
आधी रात को भांवर पड़ेंगी।

~ अजित कुमार

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