जिंदगानी मना ही लेती है – बालस्वरूप राही

जिंदगानी मना ही लेती है – बालस्वरूप राही

In life we often face defeat, dejection and frustration. Redeeming feature however is that we rebound, and the life goes on. Here is a lovely poem of Bal Swaroop Rahi, depicting this fact. Rajiv Krishna Saxena

जिंदगानी मना ही लेती है

हर किसी आँख में खुमार नहीं
हर किसी रूप पर निखार नहीं
सब के आँचल तो भर नहीं देता
प्यार धनवान है उदार नहीं।

सिसकियाँ भर रहा है सन्नाटा
कोई आहट कोई पुकार नहीं
क्यों न कर लूँ मैं बन्द दरवाज़े
अब तो तेरा भी इंतजार नहीं।

पर झरोखे की राह चुपके से
चाँदनी इस तरह उतर आई
जैसे दरपन की शोख बाहों में
काँपती हो किसी कि परछाई।

मैंने चाहा कि भूल जाऊँ पर
अनदिखे हाथ ने उबार लिया
मरे माथे की सिलवटों को तभी
गीत के होंठ ने सँवार दिया।

एक नटखट अधीर बच्चे सी
कुछ बहाना बना ही लेती है
रूठिये लाख गुदगुदा के मगर
ज़िन्दगानी मना ही लेती है।

∼ बालस्वरूप राही

लिंक्स:

Check Also

Power and forgiveness

शक्ति और क्षमा – रामधारी सिंह दिनकर

Here is a great lesson in diplomacy and human relations from Ramdhari Singh Dinkar. Forgiveness …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *