फूल और कली - उदय प्रताप सिंह

फूल और कली – उदय प्रताप सिंह

A flower blooms and dies after sacrificing all its essence and nectar to the world. A flower bud wonders why. The wise flower tells the true meaning of life to the flower bud… Here is an excerpt from a lovely poem of Uday Pratap Singh. Rajiv Krishna Saxena

फूल और कली

फूल से बोली कली‚ क्यों व्यस्त मुरझाने में है
फायदा क्या गंध औ’ मकरंद बिखराने में है

तू स्वयं को बांटता है‚ जिस घड़ी से तू खिला
किंतु इस उपकार के बदले में तुझको क्या मिला

देख मुझको‚ सब मेरी खुशबू मुझी में बंद है
मेरी सुंदरता है अक्षय‚ अनछुआ मकरंद है

मैं किसी लोलुप भ्रमर के जाल में फंसती नहीं
मैं किसी को देख कर‚ रोती नहीं‚ हंसती नहीं

मेरी छवि संचित जलाशय है‚ सहज झरना नहीं
मुझको जीवित रहना है‚ तेरी तरह मरना नहीं

फूल उस नादान की वाचालता पर चुप रहा
फिर स्वयं को देख कर भोली कली से यह कहा

जिंदगी सिद्धांत की सीमाओं में बंटती नहीं
ये वो पूंजी है जो व्यय से बढ़ती है घटती नहीं

चार दिन की जिंदगी‚ खुद को जिये तो क्या जिये
बात तो तब है कि जब‚ मर जाएं औरों के लिये

प्यार के व्यापार का क्रम अन्यथा होता नहीं
वह कभी पाता नहीं है‚ जो कभी खोता नहीं

आराम की पूछो अगर तो‚ मृत्यु में आराम है
जिंदगी कठिनाइयों से जूझने का नाम है

ये तुम्हारी आत्म केंद्रित गंध भी क्या गंध है
जिंदगी तो दान का और प्राप्ति का अनुबंध है

गंध उपवन की विरासत है‚ इसे संचित न कर
बाँटने के सुख से अपने आप को वंचित न कर

यदि संजोने का मज़ा कुछ है तो बिखराने में है
ज़िंदगी की सार्थकता बीज बन जाने में है

दूसरे दिन मैंने देखा वो कली खिलने लगी
शक्ल सूरत में बहुत कुछ फूल से मिलने लगी।

~ उदय प्रताप सिंह

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