रोते रोते बहल गई कैसे - बेकल उत्साही

रोते रोते बहल गई कैसे – बेकल उत्साही

Bekal Utsaahi (real name Mohammad Shafi Khan) is a well know poet with grass-roots in Hindi heartland. His geets reflects the concerns of farmers and rural folks. He wrote some gazals also though his forte remained geets as the last two lines of the gazal below convey. The poet was awarded Padmshree by the Government of India in 1946 and also served as a member of Rajya Sabha. Read also a more typical of his poems “Ram jane kab barsega paani” on Geeta-Kavita. Rajiv Krishna Saxena

रोते रोते बहल गई कैसे

रोते रोते बहल गई कैसे
रुत अचानक बदल गई कैसे

मैंने घर फूँका था पड़ौसी का
झोपड़ी मेरी जल गई कैसे

जिस पे नीयत लगी हो मौसम की
सूखी टहनी वो फल गई कैसे

बात जो मुद्दतों से दिल में थी
आज मुँह से निकल गई कैसे

जिन्दगी पर बड़ा भरोसा था
जिन्दगी चाल चल गई कैसे

दोस्ती है चटान वादों की
मोम बन कर पिघल गई कैसे

चढ़ते सूरज को पूजता ही रहा
फिर जवानी यह ढल गई कैसे

आप रसिया हैं गीत के बेकल
आप के घर गज़ल गई कैसे!

बेकल उत्साही

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