बरसों के बाद - गिरिजा कुमार माथुर

बरसों के बाद – गिरिजा कुमार माथुर

An intense affair that fizzled out long time ago; what if we confront the person suddenly? Perhaps best is to pretend that we do not recognize and move away. Yet, how strange it is to do so with someone who once was the most important person in life! Rajiv Krishna Saxena

बरसों के बाद

बरसों के बाद कभी
हम–तुम यदि मिलें कहीं
देखें कुछ परिचित–से
लेकिन पहिचाने ना।

याद भी न आये नाम
रूप, रंग, काम, धाम
सोचें यह संभव है
पर, मन में माने ना।

हो न याद, एक बार
आया तूफान ज्वार
बंद, मिटे पृष्ठों को
पढ़ने की ठाने ना।

बातें जो साथ हुईं
बातों के साथ गईं
आँखें जो मिली रहीं
उनको भी जानें ना।

∼ गिरिजा कुमार माथुर

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