मुझे अकेला ही रहने दो - ठाकुर गोपाल शरण सिंह

मुझे अकेला ही रहने दो – ठाकुर गोपाल शरण सिंह

Sometimes we get fed up with every thing in this world. Nothing matters any more. One tends to be indifferent to pleasure or pain at that time. Here is a nice poem by Thakur Gopal Sharan Singh. Rajiv Krishna Saxena

मुझे अकेला ही रहने दो

रहने दो मुझको निर्जन में
काँटों को चुभने दो तन में
मैं न चाहता सुख जीवन में
करो न चिंता मेरी मन में
घोर यातना ही सहने दो
मुझे अकेला ही रहने दो

मैं न चाहता हार बनूं मैं
या कि प्रेम उपहार बनूं मैं
या कि शीश शृंगार बनूं मैं
मैं हूं फूल मुझे जीवन की
सरिता में ही तुम बहने दो
मुझे अकेला ही रहने दो

नहीं चाहता हूं मैं आदर
हेम तथा रत्नों का सागर
नहीं चाहता हूं कोई वर
मत रोको इस निर्मम जग को
जो जी में आए कहने दो
मुझे अकेला ही रहने दो

~ ठाकुर गोपाल शरण सिंह

लिंक्स:

 

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