रात रात भर श्वान भूकते – हरिवंश राय बच्चन

रात रात भर श्वान भूकते – हरिवंश राय बच्चन

Unfulfilled desires in our hearts do not let us live in peace and keep pocking us from inside. Bachchan found a very interesting metaphor in barking of dogs in the night. A lovely poem. Illustration by Garima Saxena – Rajiv K. Saxena

रात रात भर श्वान भूकते

पार नदी के जब ध्वनि जाती
लौट उधर से प्रतिध्वनि आती
समझ खड़े समबल प्रतिद्वंद्वी, दे दे अपने प्राण भूकते

रात रात भर श्वान भूकते

इस रव से निशि कितनी विह्वल
बतला सकता हूं मैं केवल
इसी तरह मेरे मन में भी असंतुष्ट अरमान भूकते

रात रात भर श्वान भूकते

जब दिन होता ये चुप होते
कहीं अंधेरे में छिप सोते
पर दिन रात हृदय के मेरे ये निर्दय मेहमान भूकते

रात रात भर श्वान भूकते

∼ हरिवंश राय बच्चन

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