कानाफूसी - राम विलास शर्मा

कानाफूसी – राम विलास शर्मा

Ram Vilas Ji has so beautifully scandalized the Nature in the following mukta chhand kavita! References are to moon and stars in night, Semal (Palas) trees and mustard crops blooming in spring time, hot winds blowing in peak summers, and the early morning sunrise, in the four stanzas of the poem respectively – Rajiv K. Saxena

कानाफूसी

सुना आपने?
चांद बहेलिया
जाल रुपहला कंधे पर ले
चावल की कनकी बिखेर कर
बाट जोहता रहा रात भर,
किंतु न आईं नीड़ छोड़ कर
रंग बिरंगी किरण बयाएं!
सुना आपने?

सुना आपने?
फाग खेलने क्ंवारी कन्याएं पलास की
केशर घुले कटोरे कर मे लिये
ताकती खड़ी रह गईं,
ऋतुओं का सम्राट पहन कर पीले चीवर
बौद्ध हो गया!
सुना आपने?

सुना आपने?
अभी गली में
ऊंची ऊंची घेरेदार घघरिया पहने
चाकू छुरी बेचने वाली इरानियों की निडर चाल से
भटक रहीं थीं लू की लपटें
गलत पते के पोस्टकार्ड सी!
सुना आपने?

सुना आपने?
मोती के सौदागर नभ की
शिशिर भोर के मूंगे से पट से छनती
पुखराज किरन सी स्वस्थ युवा अनब्याही बेटी
उषाकुमारी,
सूटकेस में झिलमिल करते मोती माणिक नीलम पन्ने
लाल जवाहर सब सहेज कर
इक्के वाले सूरज के संग हिरन हो गई!
मोती के सौदागर नभ की
बेशकीमती मणी खो गई
सुना आपने?

~ राम विलास शर्मा

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