साँप – धनंजय सिंह

Here snakes are used as a metaphor for unscrupulous political leader. Lovely poem by Dr. Dhananjay Singh. Rajiv Krishna Saxena

साँप

अब तो सड़कों पर उठाकर फन
चला करते हैं साँप
सारी गलियां साफ हैं
कितना भला करते हैं साँप।

मार कर फुफकार
कहते हैं ‘समर्थन दो हमें’
तय दिलों की दूरियों का
फासला करते हैं साँप।

मैं भला चुप क्यों न रहता
मुझको तो मालूम था
नेवलों के भाग्य का अब
फैसला करते हैं साँप।

डर के अपने बाजुओं को
लोग कटवाने लगे
सुन लिया है, आस्तीनों में
पला करते हैं साँप।

~ धनंजय सिंह

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