A golden cage may entice a person for some time but then there is a yearning for freedom… and a nostalgia about the bygone days when freedom was taken for granted. Here is a lovely poem by Shivmangal Singh Suman – Rajiv Krishna Saxena
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे,
कनक–तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे–प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक–कटोरी की मैदा से।
स्वर्ण–श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण–सी चोंचखोल
चुगते तारक–अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा–होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सांसों की डोरी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न–भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
∼ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
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awesome. what a depth
Awesome
What a presence of mind. Nothing besides love. If we love with human being, animals and birds etc. Without love a person is like animals. Which is usually love with requirement.
Nice poem I enjoyed reading
This poem is from my school textbook. I used to read it in my childhood and I still remember this.
This is the poem of class 8.
This poem we used to recite in our school, Kendriya Vidayalaya.. Beautiful poem.