सर्प क्यों इतने चकित हो – प्रसुन जोशी

Here is a nice poem by Prasoon Joshi. The poem is a metaphor for a person who repeated face severe adversities and comes out a winner. Prasoon Joshi recently read this poem for Prime Minister Narendra Modi in London. – Rajiv Krishna Saxena

सर्प क्यों इतने चकित हो

सर्प क्यों इतने चकित हो
दंश का अभ्यस्त हूं
पी रहा हूं विष युगों से
सत्य हूं अश्वस्त हूं
ये मेरी माटी लिये है
गंध मेरे रक्त की
जो कहानी कह रही है
मौन की अभिव्यक्त की
मैं अभय ले कर चलूंगा
ना व्यथित ना त्रस्त हूं

वक्ष पर हर वार से
अंकुर मेरे उगते रहे
और थे वे मृत्यु भय से
जो सदा झुकते रहे
भस्म की संतान हूं मैं
मैं कभी ना ध्वस्त हूं

है मेरा उद्गम कहां पर
और कहां गंतव्य है
दिख रहा है सत्य मुझको
रूप जिसका भव्य है
मैं स्वयम् की खोज में
कितने युगों से व्यस्त हूं

है मुझे संज्ञान इसका
बुलबुला हूं सृष्टि में
एक लघु सी बूंद हूं मैं
एक शाश्वत वृष्टि में
है नहीं सागर को पाना
मैं नदी संन्यस्त हूं

~ प्रसुन जोशी

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