श्वेत कबूतर – वीरबाला भावसार

श्वेत कबूतर – डॉ वीरबाला

It happens some times. We get suddenly and without expecting, some thing that we had longed for a long long time. Heart is thrilled, and it sings, and dances! Coming of a white pigeon is a metaphor of such a rare thrill. Please read on – Rajiv Krishna Saxena

मेरे आंगन श्वेत कबूतर!

उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!

गर्मी की हल्की संध्या यों– झांक गई मेरे आंगन में
झरीं केवड़े की कुछ बूंदें, किसी नवोढ़ा के तन–मन में;
लहर गई सतरंगी–चूनर, ज्यों तन्यी के मृदुल गात पर!

उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे अपान श्वेत कबूतर!

मेरे हाथ रची मेहंदी, उर बगिया में बौराया फागुन
मेरे कान बजी बंसी–धुन, घर आया मनचाहा पाहुन
एक पुलक प्राणों में, चितवन एक नयन में, मधुर–मधुरतर!

उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!

ताना मर गयी आँखों में, मुझको उषा की अरूणाई
थितजक गयी अधरों तक आकर, बात कोई बिसरी बिसराई
ठहर गया जैसे कोई बन पाखी, मन की झुकी डाल पर

उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!

कोई सुंदर स्वप्न सुनहले, आंचल में चंदा बन आया
कोई भटका गीत उनींदा, मेरी सांसों से टकराया;
छिटक गई हो जैसे जूही, मन–प्राणों में महक–महक कर!

उड़ आया ऊंची मुडेर से, मेरे अपान श्वेत कबूतर!

मेरा चंचल गीत किलकता, घर—आंगन देहरी–दरवाजे
दीप जलाती सांझ उतरती, प्राणों में शहनाई बाजे
अमराई में बिखर गए री, फूल सरीखे सरस–सरस स्वर!

उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!

∼ डॉ. वीरबाला

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