इस मोड़ से जाते हैं – गुलज़ार

इस मोड़ से जाते हैं – गुलज़ार

Here is a great poem of Gulzar, immortalized in the movie “Aandhi”. People may start their life’s journey from seemingly equal levels, but some achieve great heights in their careers where other settle into very ordinary lives. The metaphor of high speed highways and tiny side by lanes is so apt. Who were equal once are now at such different planes that they cannot come closer even if they so wish…Rajiv Krishna Saxena

इस मोड़ से जाते हैं

इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त कदम रस्ते
कुछ तेज कदम राहें।

पत्थर की हवेली को
शीशे के घरौंदों में
तिनकों के नशेमन तक
इस मोड़ से जाते हैं।

आंधी की तरह उड़ कर
इक राह गुजरती है
शरमाती हुई कोई
कदमों से उतरती है।

इन रेशमी राहों में
इक राह तो वह होगी
तुम तक जो पहुंचती है
इस मोड़ से जाती है।

इक दूर से आती है
पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी
रुकती है न चलती है।

ये सोच के बैठी हूं
इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुंचती है
इस मोड़ से जाती है।

इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त कदम रस्ते
कुछ तेज कदम राहें।

पत्थर की हवेली को
शीशे के घरौंदों में
तिनकों के नशेमन तक
इस मोड़ से जाते हैं।

∼ गुलज़ार

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