प्राण तुम्हारी पदरज फूली – सच्‍चिदानन्‍द हीरानन्‍द वात्‍स्‍यायन ‘अज्ञेय’

प्राण तुम्हारी पदरज फूली – सच्‍चिदानन्‍द हीरानन्‍द वात्‍स्‍यायन ‘अज्ञेय’

A lover departed, gone for ever in the world yonder. The one left behind has only memories and a feeling of gratitude that they were at least together once. Here is a lovely poem of Agyeya – Rajiv Krishna Saxena

प्राण तुम्हारी पदरज फूली

प्राण तुम्हारी पदरज फूली
मुझको कंचन हुई तुम्हारे चंचल चरणों की यह
धूली!

आईं थीं तो जाना भी था–
फिर भी आओगी‚ दुख किसका?
एक बार जब दृष्टिकरों से पदचिन्हों की रेखा
छू ली!

वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी‚
गीत शब्द का कब अभिलाषी?
अंतर में पराग सी छाई है स्मृतियों की आशा
धूली!
प्राण तुम्हारी पदरज फूली!

∼ सच्‍चिदानन्‍द हीरानन्‍द वात्‍स्‍यायन ‘अज्ञेय’

लिंक्स:

 

Check Also

In the midst of noise and extreme disarray, I am the voice of heart

तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन – जयशंकर प्रसाद

In times of deep distress and depression, a ray of hope and optimism suddenly emerges …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *