प्रेम–पगी कविता – आशुतोष द्विवेदी

प्रेम–पगी कविता – आशुतोष द्विवेदी

Absolute beauty cannot be defined. It is in the eyes of the beholder. A time comes in the life of person when he discovers beauty followed by love. Poems praising the sweet-heart spontaneously arise in his heart at that time. Ashutosh Dwivedi’s poem tells about the beauty of the lovely lass from the eyes of a lover. Rajiv Krishna Saxena

प्रेम–पगी कविता

दिन में बन
सूर्यमुखी निकली‚
कभी रात में रात की रानी हुई।

पल में तितली‚
पल में बिजली‚
पल में कोई गूढ़ कहानी हुई।

तेरे गीत नये‚
तेरी प्रीत नयी‚
जग की हर रीत पुरानी हुई।

तेरी बानी के
पानी का सानी नहीं‚
ये जवानी बड़ी अभिमानी हुई।

तुम गंध बनी‚
मकरंद बनी‚
तुम चंदन वृक्ष की डाल बनी।

अलि की मधु–गुंजन
भाव भरे‚
मन की मनभावन चाल बनी।

कभी मुक्ति के
पावन गीत बनी‚
कभी सृष्टि का सुन्दर जाल बनी।

तुम राग बनी‚
अनुराग बनी‚
तुम छंद की मोहक ताल बनी।

अपने इस मादक
यौवन की‚
गति से तिहुँ–लोक हिला सकती।

तुम पत्थर को
पिघला सकती‚
तुम बिंदु में सिंधु मिला सकती।

हँसते हँसते
पतझार की धार में‚
फूल ही फूल खिला सकती।

निज मोहनी मूरत से
तुम काम की –
रानी को पानी पिला सकती।

अँखियाँ मधुमास
लिये उर में‚
अलकों में भरी बरखा कह दूं

छवि है जिसपे
रति मुग्ध हुई‚
गति है कि काई नदिया कह दूं।

उपमायें सभी
पर तुच्छ लगें‚
इस अदभुत रूप को क्या कह दूं।

बलखाती हुई
उतरी मन में‚
बस प्रेम–पगी कविता कह दूं।

∼ आशुतोष द्विवेदी

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