बांसुरी दिन की – माहेश्वर तिवारी

Here is a nice poetic interpretation of a quiet day in forest and natural outdoors. Rajiv Krishna Saxena

बांसुरी दिन की

होंठ पर रख लो उठा कर
बांसुरी दिन की

देर तक बजते रहें
ये नदी, जंगल, खेत
कंपकपी पहने खड़े हों
दूब, नरकुल, बेंत

पहाड़ों की हथेली पर
धूप हो मन की।

धूप का वातावरण हो
नयी कोंपल–सा
गति बन कर गुनगुनाये
ख़ुरदुरी भाषा

खुले वत्सल हवाओं की
दूधिया खिड़की।

∼ माहेश्वर तिवारी

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